करे आत्मा फिर हमें, अन्दर से बेचैन |
ढूंढ़ दूसरी लाइए, निकसे अटपट बैन |
निकसे अटपट बैन, कुकर की सीटी बाजी |
समझे झटपट सैन, वहीँ से बकता हाँजी |
गर रबिकर इक बार, कुकर का होय खात्मा |
परमात्मा - विलीन, करे - बेचैन - आत्मा || (2) पैसे पर बिकते रहे, तभी तो है यह हाल |
मौज अन्य करते रहे, पंडित गुरू दलाल |
पंडित गुरू दलाल, पकड़ शादी करवाए |
कहो गुरू क्या हाल, पूछने फिर ना आए |
फींचा जाता रोज, गजब पटकाता ऐसे |
बकरी वाला कथ्य, हगे मिमिया के पैसे ||
है भावना - भट-की, कसम से, अगर छेड़ा |
सचमुच खड़ा हो, जंग का नूतन बखेड़ा |
हैं कृष्ण - राधा की सगी सम्वेदनाएँ--
इस दर्द को मथुरा का मानो मधुर पेड़ा ||
(1) नश्वर है यह देह पर, भाव सदा चैतन्य |
शाश्वत हूँ साकार पर, चिरकांक्षित ना अन्य |
चिरकांक्षित ना अन्य, भटकती है अभिलाषा |
भटक रहा चहुँ ओर, पपीहा स्वाती प्यासा |
कह कृष्णा अकुलाय, भेंट कर राधे अवसर |
सुन राधा हम श्याम, नहीं हम - दोनों नश्वर || (2) राधा के दर्शन किये, पड़ी कलेजे ठण्ड |
मथुरा में आफत करे, कंस महा-बरबंड |
कंस महा-बरबंड, जो उद्धव गोकुल आये |
राधा हुई उदास, भला अब के समझाए |
जाय रहे रणछोड़, बड़ी जीवन पर बाधा |
बढ़ी प्रीति को तोड़, छोड़ कर जाते राधा ||
लगे रहो गुरु
ReplyDeleteलखनऊ वालों का सलाम
ReplyDeleteसटीक विष्लेषण आभार
कृपया कभी मेरे ब्लाग पर आकर मुझे भी आर्शिवाद दे ! आभारी रहूँगा !!
बड़ा अनुग्रह हुआ!
ReplyDeleteशुभ दीपावली
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