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Saturday 1 October 2011

मेरी टिप्पणियां और लिंक-2

आज अपने गिरेबान में झांक कर देखें- अज़ीज़ बर्नी

खरी-खरी बातें कहीं, जज्बे को आदाब |
स्वार्थी तत्वों को सदा, देते रहो जवाब ||

बड़ी कठिन यह राह है,  संभल के चलिए राह |
अपने  ही  दुश्मन  बने,  पचती  नहीं  सलाह ||

भले नागरिक वतन को, करते हैं खुशहाल |
बुरे   हमेशा   चाहते,  दंगे   क़त्ल    बवाल ||



जीवनसंगिनी..........

खूबसूरत ||
हो तुम ||
मेरी नजरों ने कहा |
जरूरत हो तुम-
जिगर के टुकड़ों ने कहा |
सम्पूरक हो तुम ||
अधरों ने कहा ||
बेहतर हो तुम |
मंदिर की मूरत ने कहा ||

2 comments:

  1. कविताओं की तारीफ जितनी की जाए कम है.

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  2. लिंक के अंदर लिंक...
    बहुत सुन्दर लिंक दिए हैं....
    सादर...

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