चर्चा -मंच
श्रम - सीकर अनमोल है, चुका सकें न मोल |
नत - मस्तक गुरुदेव है, सारा यह भू-गोल ||
मन और झील कभी नहीं भरती
मन-का मनमथ-मनचला, मनका पावै ढेर |
मनसायन वो झील ही, करती रती कुबेर |
करती रती कुबेर, झील लब-लबा उठी है |
हुई नहीं अंधेर, नायिका सुगढ़ सुठी है |
दीपक की बकवाद, सुना तो माथा ठनका |
कीचड़ सा उपमान, रोप कर तोडा मनका ||
कभी-कभी....
डॉ. शरद सिंहध्वनन,
ध्वन और ध्वन्य से
प्रभावी अव्यक्ति |
ध्वंसक के लिए असहनीय
मौनित्व की शक्ति ||
ध्वनन=अव्यक्त शब्द
ध्वन= शब्द
ध्वन्य=व्यंगार्थ
थर्ड-क्लास को ट्रेन से, हटा चुके थे लोग |
फोर्थ क्लास भुखमरी का, मिटा श्रेष्ठ संजोग ||
अब लास्ट क्लास थर्ड क्लास ||
भुखमरी ही आज के सरकार की गरीबी है |
जय सम्मोहन जय मनमोहन
जय नग्नोहन जय रक्त्दोहन ||
ध्वन और ध्वन्य से
प्रभावी अव्यक्ति |
ध्वंसक के लिए असहनीय
मौनित्व की शक्ति ||
ध्वनन=अव्यक्त शब्द
ध्वन= शब्द
ध्वन्य=व्यंगार्थ
कालू गरीब हाजिर हो-
अष्टावक्र
फोर्थ क्लास भुखमरी का, मिटा श्रेष्ठ संजोग ||
अब लास्ट क्लास थर्ड क्लास ||
भुखमरी ही आज के सरकार की गरीबी है |
जय सम्मोहन जय मनमोहन
जय नग्नोहन जय रक्त्दोहन ||
मेरी कविता के तारतम्य में आपकी ध्वनि को व्याख्यायित करती रचना अत्यंत सारगर्भित है. आभारी हूं.
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