बरसात आई
कवि-हृदय
लब-लबाया--
शब्द-सरिता
बह चली
जाने-अनजाने रास्ते ||
टपकती बूंदें
बहता पानी
भीगते लोग
इन्द्र धनुष
बिजली की चमक
बाढ़ की धमक
बादल की गरज
मजे के वास्ते ||
पर है क्या बला
बादल फटना ??
जरा हटना --
पूछता हूँ रविकर से
लिखे तो पक्तियां चार--
पर वो तो--
बह गया यार ||
* * * * *
पोती सारी भस्म, पुजाता लम्बी पूजा |
कर रविकर अफ़सोस, बाप क्यूँ बैठा गुमसुम |
बना न अफसर किन्तु, कमाता तूतुम तूतुम ||
तूतुम = जल्दी
* * * * *
तूतुम - तूतुम वो हुआ, तगड़ा तोता - चश्म |
गुड़ लेने गुरूजी गए, पोती सारी भस्म |
पोती सारी भस्म, पुजाता लम्बी पूजा |
खरबूजे को देख, बदलता रंग खरबूजा |
कर रविकर अफ़सोस, बाप क्यूँ बैठा गुमसुम |
बना न अफसर किन्तु, कमाता तूतुम तूतुम ||
तूतुम = जल्दी
fun filled poem
ReplyDeleteपूछता हूँ रविकर से
लिखे तो पक्तियां चार--