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Saturday 9 July 2011

सिंगार --

                   (1)
हर-सिंगार  बकवास है--
जिसपर ध्यान नहीं जाए |
बिन-सिंगार वो खास है--
अनायास  आकृष्ट  कराये ||  

                 (2)

इसी  गली  से  क्यूँ ?

तुम  गुजरते  हो  यूँ  

निर्लिप्त - निर्विकार  

कहो  तो  न  जियूं ||

                (3)

ओ प्रेम-दीवानी --
*बागर पर बैठी रानी !   * नदी के किनारे बेहद ऊंची जगह
बादल आये
बरसे 
प्रेम-जल बाढ़ा--
कई बन्ध टूटे
पर अब भी
जीवन नैया
मिलन को तरसे
तुम क्यूँ रूठे ?? 



1 comment:

  1. इसी गली से क्यूँ ?

    तुम गुजरते हो यूँ

    निर्लिप्त - निर्विकार

    कहो तो न जियूं ||


    bahut khub

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