बड़ी अदालत था गया, खुदा का बंदा एक,
कातिल को फांसी मिले, मारा बेटा नेक |
कातिल को फांसी मिले, मारा बेटा नेक |
मारा बेटा नेक, हुआ आतंकी हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |
जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु संभालत,
मानो करते माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
-सुबोधकांत सहाय संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों,
जनता की अवमानना, करते रहते क्यों ?
करते रहते क्यो, हमेशा मंत्रि-कबीना |
जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?
सत्ता-मद में चूर, बढ़ी बेशरमी बेहद,
आतंकी फिर कहीं, उड़ा न जाएँ संसद |
बहुत खूब रविकर जी !कुन्दल्नियों का जादू सिर चढ़के बोले है .
ReplyDeleteबृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
ग़ज़ल
सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,
साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।
इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,
लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।
एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,
सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।
हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह
ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।
हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,
हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।
ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,
कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,
चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,
शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .
गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़
'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।
विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ऐसे नेताओं को शर्म भी नहीं अति ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteसादर बधाई ||
हम तो कहतें है की एक बार पूरी संसद ही उड़ जाए तो देश की सबसे बड़ी समास्याएं ही ख़त्म हो जाएँ और इनको भी पता चले अपनों से बिछड़ने का दर्द/बहुत ही सार्थक प्रस्तुति बहुत बधाई आपको /
ReplyDeleteसंसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों,
ReplyDeleteजनता की अवमानना, करते रहते क्यों ?
बहुत खूब रविकर जी .