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Sunday 25 September 2011

मेरी टिप्पणियां और लिंक ||

चर्चा -मंच 

श्रम - सीकर अनमोल है,  चुका सकें न मोल |
नत - मस्तक गुरुदेव है,  सारा यह भू-गोल ||


मन और झील कभी नहीं भरती

मन-का  मनमथ-मनचला, मनका पावै ढेर |
मनसायन वो झील ही,  करती रती  कुबेर |

करती रती  कुबेर,  झील  लब-लबा  उठी  है |
हुई  नहीं  अंधेर,  नायिका  सुगढ़  सुठी  है |

दीपक  की बकवाद, सुना  तो  माथा  ठनका |
कीचड़ सा उपमान,  रोप कर  तोडा  मनका ||

कभी-कभी....



ध्वनन,
ध्वन और ध्वन्य से 
प्रभावी अव्यक्ति |
ध्वंसक के लिए असहनीय
मौनित्व की शक्ति ||

ध्वनन=अव्यक्त शब्द
ध्वन= शब्द
ध्वन्य=व्यंगार्थ 


कालू गरीब हाजिर हो- 

अष्टावक्र


थर्ड-क्लास को ट्रेन से, हटा चुके थे लोग |
फोर्थ क्लास भुखमरी का, मिटा श्रेष्ठ संजोग ||


अब लास्ट क्लास थर्ड क्लास ||
भुखमरी ही आज के सरकार की गरीबी है |

जय सम्मोहन जय मनमोहन
जय नग्नोहन जय रक्त्दोहन ||

1 comment:

  1. मेरी कविता के तारतम्य में आपकी ध्वनि को व्याख्यायित करती रचना अत्यंत सारगर्भित है. आभारी हूं.

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