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Tuesday 6 September 2011

हाथ छुड़ा के -- फिर घर चलना |


माँ का ललना |
झूले पलना ||

समय समय पर  
दूध पिलाती |
जीवन खातिर-
हाड़ गलाती |
दीप शिखा सी 
हर-पल जलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आयु  बढती--
ताकत घटती |
पति-पुत्र में -
बंटती-मिटती |
आज बिकल है -
कल भी कल-ना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आया रिश्ता- 
बेटा बिकता |
धीरे-धीरे--
माँ से उकता |
होती परबस-
डरना-मरना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


हो एकाकी ,
साँसे बाकी |
पोते-पोती 
बनती जोती |
हाथ छुड़ा के  --
फिर घर चलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||

1 comment:

  1. बहुत उम्दा लिखा है ...आप अपनी सभी रचनाएँ एक ही ब्लौग पर क्यूँ नहीं लगाते। उससे बिखराव कम होगा और ज्यादा पाठकों तक पहुंचेगा। आपकी रचनाएँ अनमोल हैं।

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