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Thursday 8 September 2011

चर्चा-मंच की प्रस्तावना

  बड़ी अदालत  था  गया, खुदा का बंदा एक,  
 कातिल को फांसी मिले,  मारा   बेटा  नेक |  

मारा  बेटा  नेक, हुआ  आतंकी  हमला ,
कातिल मरणासन्न, भूलते अब्बू बदला |

जज्बा तुझे सलाम, जतन से शत्रु  संभालत,
                        मानो  करते  माफ़, खुदा की बड़ी अदालत |               
                                        
(जनता आतंकी हमलों की आदी हो चुकी है)
 -सुबोधकांत सहाय
संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों, 
 जनता  की  अवमानना, करते  रहते  क्यों ?

करते  रहते  क्यो, हमेशा  मंत्रि-कबीना |
 जीने का अधिकार, आम-जनता से छीना ?

सत्ता-मद  में  चूर,  बढ़ी  बेशरमी  बेहद,
आतंकी फिर कहीं,  उड़ा  न  जाएँ  संसद |

5 comments:

  1. बहुत खूब रविकर जी !कुन्दल्नियों का जादू सिर चढ़के बोले है .
    बृहस्पतिवार, ८ सितम्बर २०११
    गेस्ट ग़ज़ल : सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही.
    ग़ज़ल
    सच कुचलने को चले थे ,आन क्या बाकी रही ,

    साज़ सत्ता की फकत ,एक लम्हे में जाती रही ।

    इस कदर बदतर हुए हालात ,मेरे देश में ,

    लोग अनशन पे ,सियासत ठाठ से सोती रही ।

    एक तरफ मीठी जुबां तो ,दूसरी जानिब यहाँ ,

    सोये सत्याग्रहियों पर,लाठी चली चलती रही ।

    हक़ की बातें बोलना ,अब धरना देना है गुनाह

    ये मुनादी कल सियासी ,कोऊचे में होती रही ।

    हम कहें जो ,है वही सच बाकी बे -बुनियाद है ,

    हुक्मरां के खेमे में , ऐसी खबर आती रही ।

    ख़ास तबकों के लिए हैं खूब सुविधाएं यहाँ ,

    कर्ज़ में डूबी गरीबी अश्क ही पीती रही ,

    चल ,चलें ,'हसरत 'कहीं ऐसे किसी दरबार में ,

    शान ईमां की ,जहां हर हाल में ऊंची रही .

    गज़लकार :सुशील 'हसरत 'नरेलवी ,चण्डीगढ़

    'शबद 'स्तंभ के तेहत अमर उजाला ,९ सितम्बर अंक में प्रकाशित ।

    विशेष :जंग छिड़ चुकी है .एक तरफ देश द्रोही हैं ,दूसरी तरफ देश भक्त .लोग अब चुप नहीं बैठेंगें
    दुष्यंत जी की पंक्तियाँ इस वक्त कितनी मौजू हैं -

    परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं ।
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  2. ऐसे नेताओं को शर्म भी नहीं अति ...

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    सादर बधाई ||

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  4. हम तो कहतें है की एक बार पूरी संसद ही उड़ जाए तो देश की सबसे बड़ी समास्याएं ही ख़त्म हो जाएँ और इनको भी पता चले अपनों से बिछड़ने का दर्द/बहुत ही सार्थक प्रस्तुति बहुत बधाई आपको /

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  5. संसद की अवमानना, मचती खुब चिल्ल-पों,
    जनता की अवमानना, करते रहते क्यों ?
    बहुत खूब रविकर जी .

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